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की अनुभूति होती है। इस अपेक्षा से यह कहा जा सकता है कि मोक्ष ही शांति है, पर मोक्ष यों ही तो नहीं मिल जाता। वहां तक पहुंचने के लिए एक यात्रा करनी होती है; और जब यात्रा करनी होती है, तब उसके लिए मार्ग की सही-सही जानकारी भी अपेक्षित है। जनता ऐसा मार्ग चाहती है, जिस पर चलने में कोई कठिनाई न हो। कठिनाई के नाम से वह घबराती है। यदि बिना कठिनाई कोई मार्ग मिल जाए तो शायद ही कोई व्यक्ति मोक्ष से वंचित रहना चाहेगा, लेकिन जहां कठिनाई झेलने का प्रसंग आता है, वहां वह कह देता है कि ऐसा मोक्ष मुझे नहीं चाहिए।
सेठ के यहां खाती काम करता था। वह दिन-भर खूब श्रम करता। सेठ भी उसे खाने के लिए अच्छा और पर्याप्त भोजन देता। एक दिन शाम के समय खाती भोजन कर रहा था। उस समय उसी घर में काम करनेवाला एक चमार वहां पहुंचा गया। खाती की थाली में परोसा हुआ भोजन देखकर उसके मुंह में पानी भर आया और सोचने लगा कि काश! मैं भी खाती होता।
संयोग से दूसरे दिन जब वह चमार सेठ के घर पहुंचा, तब खाती लक्कड़ फाड़ रहा था। उसका सारा शरीर पसीने से तर-बतर हो रहा था। सांस फूल रही थी। यह श्रम और यह शारीरिक स्थिति देखकर वह चमार कतरा गया और बोला
देखू खाती जीमतो, हूं पिण खाती होऊं।
देखू लक्कड़ फाड़तो, तो डूम को डूम ही रेऊं।। आज संसार की भी यही स्थिति है। मोक्ष पाने के लिए सबको उत्कंठा है, लेकिन जब यह बताया जाता है कि मोक्ष सीधा नहीं मिलता, उसके लिए कड़ी साधना की अपेक्षा है, तब अधिकतर व्यक्ति घबरा जाते हैं। वे अपना मन कमजोर कर लेते हैं, आगे बढ़ने का साहस नहीं जुटा पाते। हां, कुछ-एक व्यक्ति ऐसे अवश्य होते हैं, जो कठिन-से-कठिन मार्ग पर चलकर भी मोक्ष पाने के लिए दृढ़ संकल्पित होते हैं और एक-एक कदम आगे बढ़ते हुए एक दिन लक्ष्य तक पहुंच जाते हैं। मोक्ष का मार्ग
पूछा जा सकता है कि मोक्ष का मार्ग कौन-सा है। मोक्ष के लिए तीन बातों की जरूरत है। पहले व्यक्ति तत्त्वज्ञ बने। सत्य का ज्ञान होने के बाद अपना दृष्टिकोण सम्यक बनाए। फिर लक्ष्य स्थिर करके वहां तक पहंचने
आत्मा : महात्मा : परमात्मा
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