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का प्रयास करे। इन तीनों के बिना कल्याण का पथ प्रशस्त नहीं होता, मोक्ष नहीं मिलता। दूसरे शब्दों में कहूं तो सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन और सम्यक चारित्र का समन्वित रूप ही मोक्षमार्ग है। जैन-दर्शन में इन तीनों तत्त्वों का विशद विवेचन प्राप्त है। इनकी आराधना करनेवाला सहज रूप से जीवन की पवित्रता और शांति को प्राप्त होता है। ज्ञान का मूल्य
बहुत-से व्यक्ति अज्ञान से नष्ट हो जाते हैं। उन्हें पता नहीं होता कि किस क्रिया की क्या प्रतिक्रिया होती है। इसलिए अज्ञान को अनिष्टकर बताया गया। अज्ञान मिटाने के लिए ज्ञानीजनों का संपर्क आवश्यक है। उनके संपर्क के बिना ज्ञान होना बहुत कठिन है। बिना ज्ञान आस्था नहीं जमती और उसके बिना आचरण सम्यक नहीं हो सकता। अतः अच्छे और बुरे का ज्ञान करना नितांत अपेक्षित है। अच्छाई और बुराई दोनों ज्ञेय हैं
बहुत-से लोगों का चिंतन है कि हमें तो केवल अच्छाई जाननी चाहिए, बुराई का ज्ञान करने की कोई अपेक्षा नहीं है। मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि बुराई का ज्ञान किए बिना वे अच्छे और बुरे का विवेक कैसे कर सकेंगे, कैसे तो बुराई का परित्याग कर सकेंगे और कैसे अच्छाई का संग्रहण कर सकेंगे। हम अहिंसा की बात करते हैं, किंतु हम यदि हिंसा को जानेंगे ही नहीं, तो हिंसा से उपरत कैसे हो सकेंगे? फिर हिंसा से उपरत हुए बिना अहिंसा की साधना कैसे संभव हो सकेगी? आप असत्य से बचना चाहते हैं, पर जब तक आपको असत्य की पहचान ही नहीं है, तब तक आप उससे कैसे बच पाएंगे? सत्य की साधना कैसे कर सकेंगे? किसी को देशी घी खरीदना है। वह बाजार जाता है। अब यदि उसे डालडा की पहचान ही नहीं तो बहुत संभव है कि वह धोखा खा जाएगा। देशी घी के स्थान पर डालडा लेकर घर पहुंच जाएगा। इसलिए मैंने कहा कि अच्छे
और बुरे दोनों तत्त्वों का ज्ञान अपेक्षित है। इस ज्ञान के पश्चात ही हेय के परित्याग और उपादेय के स्वीकरण की बात शुरू होती है। स्वयं को जानें
ज्ञान की जहां बात है, वहां सबसे महत्त्वपूर्ण है स्वयं को जानना। आप कहेंगे कि स्वयं को कौन नहीं जानता। मैं कहता हूं, स्वयं को जाननेवाला कोई विरला ही मिलेगा। संसार के अधिकतर प्राणी स्वयं से
- आगे की सुधि लेइ
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