SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४ : आत्मा : महात्मा : परमात्मा शांति की चाह सार्वजनीन है सिरसा में कल से अध्यात्म की धारा बह रही है। उसमें प्रवाहित होने के लिए जनता में उत्साह है। मुझे लगता है कि जनता बहुत भूखीप्यासी है। लोग कहते हैं कि देश में अनाज की भूख है और पानी की प्यास है, लेकिन मैं तो अनुभव कर रहा हूं कि रोटी-पानी की भूख-प्यास की अपेक्षा शांति की भूख-प्यास ज्यादा है। कई व्यक्ति कहते हैं कि जनता में धर्म के प्रति आकर्षण नहीं है, पर मुझे यह बात यथार्थ नहीं लगती। मुझे तो लगता है कि जिस विचार या तत्त्व से जनता की शांति की भूख-प्यास मिटती है, उसके प्रति उसका आकर्षण है, फिर भले वह धर्म हो या और कुछ। पर कठिनाई यह है कि जनता की यह भूख-प्यास समझनेवाले लोग बहुत कम हैं। जो इसे समझते हैं, उनमें से भी अधिकतर अपने स्वार्थ से घिरे हैं। उनका सारा प्रयत्न अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए होता है। शांति की प्राप्ति की दिशा में जनता का पथ-दर्शन करने में उनकी कोई अभिरुचि नहीं है। इस स्थिति में जनता की यह भूख-प्यास शांत हो भी कैसे? हां, कुछ-एक व्यक्ति ऐसे हैं, जिनका अपना कोई स्वार्थ नहीं है। वे अपना आत्म-धर्म मानकर जनता का सही पथ-दर्शन करते हैं, उसकी भूख-प्यास शांत करते हैं। ऐसे व्यक्ति सचमुच जनता के बहुत बड़े उपकारी होते हैं। मोक्ष ही शांति है __शांति का सर्वोच्च शिखर है-मोक्ष। यह एक ऐसी स्थिति है, जहां अशांति का नाम भी अवशेष नहीं रहता। व्यक्ति जितना-जितना मोक्ष के नजदीक पहुंचता है, उस-उस सीमा तक वह शांति की अनुभूति करता है। जितना अधिक वह मोक्ष से दूर रहता है, उसे उतनी ही अधिक अशांति .८८ - आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy