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अन्तर्मुखता के नियम-(a) १. मध्यराभि और प्रातः छह बजे शरीर का तापमान निम्नतम रहता है। शक्ति की उत्तेजना कम होने के कारण इस समय अन्तर्मुखता शीघ होती है। मस्तिष्क का संतुलन भी बढ़ता है।
२. दिन के समय शरीर के दाएं भाग की चमड़ी का तापमान अधिक होता है। रात्रि में बाएं भाग की चमड़ी का तापमान भी अधिक होता है।
३. दिन में स्वस्थ व्यक्ति पर दाएं भाग से संबद्ध पिंगला (बहिर्मुखता लाने वाली) नाड़ी का प्रभाव होता है। रात में श्या का प्रभाव होता है। योगी नाड़ी-शुद्धि द्वारा शा को दिन में, पिंगला को रात में चलाता है। इससे सुषुम्ना जागती है।
०८ मार्च २०००
- श्रीतम की ओर )__
(भीतर की ओर
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