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मैत्री मिन और शनु ये दोनों व्यवहार की भूमिका पर चलने वाले शब्द हैं। प्रिय व्यक्ति मिन और अप्रिय व्यक्ति शनु बन जाता है। अध्यात्म की भाषा में मित्र का अर्थ है हितचिन्तक और मैत्री का अर्थ है हितचिन्तन।
दूसरे के अहित का चिन्तन करने वाला ध्यान का अधिकारी नहीं हो सकता। इसलिए ध्यानसाधना के साथ-साथ मैत्री का अभ्यास करना आवश्यक है।
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०६ फरवरी
२०००
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शीतर की ओर
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