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सुरक्षा कवच - (2)
यह जगत नाना रुचि, नाना विचार और नाना प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों से संकुल है। बहुत व्यक्ति अच्छे होते हैं। कुछ निषेधात्मक चिंतन वाले होते हैं। वे दूसरे के अनिष्ट की बात सोच सकते हैं और अनिष्ट बात कर भी सकते हैं। इस स्थिति में अपनी सुरक्षा के लिए सुरक्षा कवच का प्रयोग बहुत आवश्यक है।
१. सिद्धासन, पद्मासन या वज्रासन की मुद्रा में बैठें। २. मेरुदण्ड सीधा रहे।
३. दोनों हथेलियों को तैजस केन्द्र पर स्थापित कर दीर्घश्वास लें और श्वास संयम कर भावना करें— मेरे शरीर के चारों ओर प्राण का शक्तिशाली वलय बन रहा है। वह अपनी शक्ति से बाहर से आने वाले दुष्प्रभाव को रोक रहा है। मैं उस आभावलय के बीच सुरक्षित हूं।
४. अपनी सुरक्षा का मानसिक चित्र बनाएं। ५. फिर श्वास का रेचन करें।
६. इक्कीस मिनिट तक यह प्रयोग करें।
इक्कीस दिन के प्रयोग से यह रक्षा कवच सिद्ध
हो सकता है।
०२ अक्टूबर २०००
भीतर की ओर
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