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द्वार बंद न हो धार्मिक लोग सूक्ष्म तत्त्व के नियम की खोज में आगे बढ़ सकते हैं किन्तु उनके पैर बंधे हुए हैं। पैरों को एक मस्तिष्कीय अवधारणा ने बांध रखा है।
अवधारणा यह है-पूर्वजों ने जो सत्य खोजा उससे आगे खोज का कोई अवकाश नहीं है। इसलिए वे अपने पूर्वजों की वाणी से बंधे हुए हैं। उससे आगे शोध करने के लिए उद्यत नहीं हैं।
हम भूल जाते हैं-द्रव्य के अनन्त पर्याय हैं। कोई भी सब पर्यायों का प्रतिपादन नहीं कर सकता। फिर सत्य की खोज का द्वार कैसे बंद होगा?
०५ सितम्बर
२०००
(भीतर की ओर
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