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तळठठरू
नया प्रस्थान
नई दिशा की खोज जरूरी है । अर्थ और पदार्थ की दिशा में चलने वाले मनुष्य ने आसक्ति का जाल बुना है । मकड़ी अपने ही जाल में फंस गई है।
नई दिशा है चैतन्य की दिशा । उस दिशा में चलने वाला मनुष्य सहज ही अनासक्ति का वरण कर लेता है ।
जीवन यात्रा में पदार्थ को छोड़ा नहीं जा सकता। जिसे छोड़ा जा सकता है, वह है आसक्ति । उससे मुक्ति पाने के लिए जरूरी है नया प्रस्थान, आत्मानुभूति की दिशा में चरणविन्यास |
०३ जनवरी
२०००
भीतर की ओर
१६.
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