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संभेद प्रणिधान-[२) संभेद प्रणिधान की प्रक्रिया का ज्ञान आवश्यक है। अर्ह का जप या ध्यान करने वाले साधक को अर्ह के वलय की कल्पना करनी चाहिए। शरीर के चारों ओर अहं का वलय बना हुआ है और स्वयं उस वलय के मध्य स्थित है। इस विधि से अहं के साथ संश्लेष हो जाता है।
संभेद प्रणिधान का अभ्यास अभेद प्रणिधान की पृष्ठभूमि बन जाता है।
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२६ मई २०००
____— भीतर की ओर
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