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बल केन्द्र बल केन्द्र का स्थान जीभ है। तंत्र साधना के अनुसार यह ज्ञानेन्द्रिय है। इसका कर्मेन्द्रिय जननेन्द्रिय है। जीभ का असंयम कामवासना को उद्दीप्त करता है। इसका संयम बलकेन्द्र की साधना में सहयोगी बनता है।
हठयोग में जीभ और तालु के मिलन को खेचरी मुद्रा कहा जाता है। वह हठयोग की एक विशिष्ट साधना है। साधारण आदमी खेचरी मुद्रा की साधना नहीं कर सकता किन्तु जीभ को उलटकर तालु की ओर ले जा सकता है। यह एकाग्रता और वृत्ति परिष्कार के लिए बहुत मूल्यवान प्रयोग है।
०८ अप्रैल २०००
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