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________________ रूपकोशा के लावण्य को देख सभी प्रेक्षक मुग्ध हो गए। स्थूलभद्र एकटक रूपकोशा को देख रहे थे। चाणक्य ने कहा'यह है भारत की कलामूर्ति रूपकोशा।' स्थूलभद्र का कलाप्रिय मन रूपकोशा की भाव-तरंगों पर टिक चुका था। उसने कहा- 'तेरी परीक्षा सही है।' रूपकोशा ने तिरछी नजरों से स्थूलभद्र को देख लिया। अब रूपकोशा वास्तव में अभिसारिका बन गई थी। उसके नृत्य में हृदय के भाव सराबोर हो गए। उसकी साधना और कौशल खिल उठा। लज्जा और संकोच से धीरे-धीरे चरण उठाती हुई उसने नदी के तट पर खड़े राजकुमार को देखा। वह हर्षावेश में आ गई। उसके सारे अंगप्रत्यंग, आभूषण और वस्त्र-सभी नृत्यमय हो गए। हृदय और उत्साह और गति में प्रकंपन! नयनों में प्रिय-मिलन की मधुर आशा, वदन पर मीठी गरमाहट! नदी पर खड़े राजकुमार ने पदचाप सुने। उसे लगा कि कोई मृग आ रहा है। उसने धनुष पर बाण चढ़ाया और पदचाप की दिशा में देखा। वनदेवी को देख उसका धनुष हाथ से छूट गया। अभिसारिका के नयनों की लज्जा और गहरी हो गई। राजकुमार के सामने उसने ऐसी मुद्राएं प्रस्तुत की, जिससे यह स्पष्ट हो रहा था कि उनके मिलन को कोई रोक नहीं सकेगा। स्थूलभद्र के मुंह से निकला, 'ओह!' चाणक्य ने पूछा- क्या हुआ?' 'जीत गया।' 'कौन? नृत्य या नृत्यांगना ?' 'दोनों ।' प्रेक्षक आतुर नयनों से मस्ती भरे कमल-नयनों का संग्राम देख रहे थे। राजकुमार उल्लास भरे नयनों से अभिसारिका प्रेयसी की ओर बढ़ा। प्रेयसी तो संकोच और लज्जावश पीछे खिसक रही थी। उसके नयन मिलन आर्य स्थूलभद्र और कोशा ८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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