________________
के लिए आतुर हो रहे थे। उसका शरीर राजकुमार के बाहुपाश में समाने को लालायित हो रहा था। किन्तु उसके चरण...
सोल्लक की वीणा से मिलन का माधुर्य जागृत हो उठा। बांसुरी से वसन्त का वायु बहने लगा। कोकिल तरंग से पंचम स्वर की रस-सरिता प्रवाहित हुई।
दोनों निकट आए।
न संसार है, न प्रकृति, एकान्त और नीरव एकान्त। मिलन के मधुर आनन्द से दोनों मस्त हो उठे।
नृत्य का वेग बढ़ा। सारा वातावरण ऊर्मिल हो उठा। कोशा की साधना पराकाष्ठा का स्पर्श करने लगी।
स्थूलभद्र के कंधों पर हाथ रखते हुए चाणक्य ने कहा- 'अत्यन्त कुत्सित!'
'क्या?' 'मिलन की तमन्ना।'
'तू पागल है, विष्णु! तेरा स्थान भी विशास्त्र में है, कला में नहीं। यदि आज तू मुझे यहां न लाता तो मैं भारत की श्रेष्ठ कलालक्ष्मी के दर्शन कभी न कर पाता।' स्थूलभद्र ने कहा।
चाणक्य मन ही मन हंसने लगा। तीर लक्ष्य को बींध चुका था। स्थूलभद्र के मन में कोशा के प्रति अनुराग जाग गया। रूपकोशा बार-बार स्थूलभद्र को ही देख रही थी।
मालव का राजकुमार उस सभा में उपस्थित था। उसके प्राणों में कोशा बस चुकी थी। उसे पाने के दृढ़ संकल्प ने उसे तिलमिला दिया।
रथपति सुकेतु कोशा के प्रथम दर्शन से ही मुग्ध हो चुका था। अभिसारिका के नृत्य ने उसे और पागल बना डाला। वह उसे पाने की मन-ही-मन योजना बनाने लगा।
यह क्रम पूरा हुआ।
८६
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org