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________________ १३. कौन जीतेगा? कोशा को यह पूर्ण विश्वास हो गया कि आर्य स्थूलभद्र एक समर्थ वीणावादक हैं। उनके वीणावादन में प्राण और साधना है। उनकी कला में स्वयंसिद्धि है। कोशा को यह भी विश्वास हो गया कि स्थूलभद्र कामदेव की प्रतिमूर्ति हैं। उसके यौवन में पवित्रता का तेज है, उसकी बाहु में महारथी का बल है, उसकी आंखों में किसी दार्शनिक पुरुष का दिव्य ज्ञान प्रकाश है, उसके वदन पर सौम्यता है। इतना विश्वास होने पर कोशा के प्राणों में स्थूलभद्र को अपना बनाने की ममता जागी। यदि स्थूलभद्र जीवनसाथी बन जाए तो पृथ्वी पर स्वर्ग उतर आए-ऐसा स्वप्न कोशा के हृदय में जागने लगा। यह स्वप्नसृष्टि और यह कामना मूर्त हो, इससे पहले ही मगधेश्वर की रातनर्तकी बनने का दिन निकट आ गया। शरद पूर्णिमा की रात्रि में कोशा का नृत्य आयोजित था। उसकी पूर्व तैयारी में वह संलग्न थी। जनता के हृदय को जीतने की आशा उसमें तीव्र हो रही थी। वह दिन-रात नृत्य और संगीत की साधना करने लगी। कभी-कभी आचार्य कुमारदेव आते और रूपकोशा के अविरत परिश्रम को देखकर हर्ष-विभोर हो जाते। रूपकोशा गुरुदेव के समक्ष संगीत की सूक्ष्म चर्चा करती और आचार्य द्वारा निर्दिष्ट तत्त्वों को अपने नृत्य में समाविष्ट कर लेती। क्या इस अविरत परिश्रम से कोशा जनता के हृदय को ही जीतना चाहती थी, या कुछ और ? हां....कुछ और भी। आर्य स्थूलभद्र और कोशा ८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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