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सारा भार कोशा को सम्हला दिया और कोशा को राजनर्तकी का मान्यास्पद स्थान दिलाकर संसार त्याग करने का निश्चय कर लिया। ..
कोशा चित्रा को सुसंस्कारित करने का प्रयत्न करने लगी। उसे बालोचित नृत्य की शिक्षा दी और स्वयं भी नृत्य की कठोर साधना में संलग्न हो गई।
_ आधा घंटा बीता ही था कि माधवी ने आकर कोशा से कहा – 'देवी! मातुश्री लौट आयी हैं और विश्रामगृह में आपकी प्रतीक्षा कर रही हैं।' ____ कोशा ने चित्रलेखा का एक चुम्बन लिया। उसे परिचारिका को सौंप वह विश्रामगृह में आयी, माता को नमस्कार कर एक आसन पर बैठ गई। देवी सुनन्दा ने कहा- 'बेटी! क्या काम था ?'
_ 'कोई महत्त्व का कार्य तो नहीं था। परन्तु......' कोशा बोल नहीं पायी। उसका मन लज्जा से भर गया। वह स्थूलभद्र के विषय में कुछ कहना चाहती थी।
'क्या?'
'कल प्रात:काल मैं महामात्य के जिनालय में दर्शन करने जाना चाहती हूं, आप यदि आज्ञा दें तो....' कोशा ने कहा।
'आनन्दपूर्वकजा.... इसमें इतना क्या संकोच? तेरेसाथ कौनजाएगा?' 'चित्रा और माधवी।' 'तो फिर वत्सक को बुलाना होगा।' 'नहीं, मां! मेरा विचार शिविका में जाने का है।' 'शिविका क्यों ?' मां ने मुसकराते हुए पूछा। 'वर्षा में नौकाविहार आपत्तिजनक तो नहीं है ?' कोशा ने कहा।
'बेटी! जहां वत्सक हो वहां कोई विपत्ति नहीं हो सकती। शिविका में समय अधिक लगेगा। इससे अच्छा है कि तू रथ में चली जा।'
'मां! बहुत काल से मैंने शिविका का उपयोग नहीं किया है और मैं यहां से इतनी शीघ्र प्रस्थान करूंगी कि सूर्योदय के पश्चात् एक-दो घटिका में वहां पहुंच जाऊंगी।'
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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