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'माधवी....!'
'जी....' कहकर माधवी कोशा के कक्ष में गई ।
'मातुश्री क्या कर रही हैं ?'
'वे मंदिर में गई हैं, अभी आने ही वाली हैं। क्या आपके लिए पानक लगाऊं ?'
'नहीं ! जब मातुश्री आ जाए तो मुझे बुला लेना। मैं नृत्यगृह में ही हूं।' कहकर कोशा नृत्यगृह की ओर चली गई ।
नृत्यगृह में तीन वर्ष की छोटी बहिन चित्रा को संस्कार दिए जाते थे । चित्रलेखा को तैयार करने का पूरा दायित्व कोशा ने ले लिया था । देवी सुनन्दा वैशाली के एक लिच्छवी युवक के प्रेम में फंस चुकी थी और वे जब पाटलीपुत्र आए तब कोशा की उम्र केवल दो वर्ष की थी । मगधेश्वर ने देवी सुनन्दा को राजनर्तकी का गौरवास्पद पद दिया, तब कोशा चार वर्ष की थी। मगधेश्वर की आज्ञा से देवी सुनन्दा अपने प्रियतम के साथ रहने लगी।
१२. खो गया हृदय
देवी सुनन्दा अपनी प्रिय कन्या कोशा को संस्कारित करने का पूरा प्रयत्न कर रही थी । वह सांसारिक सुखोपभोग करती हुई कला की उपासना करती रही। कुछ वर्ष बीते । सुनन्दा गर्भवती हुई। उसने चित्रा को जन्म दिया। सात-आठ महीने बीते ही थे कि उसके प्रियतम मुदगलायन का आकस्मिक निधन हो गया।
प्रियतम की आकस्मिक मृत्यु का आघात वह सह नहीं सकी। संसार से उसकी रुचि टूट गई। जब चित्रा तीन वर्ष की हुई, तब सुनन्दा ने उसका
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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