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'माता ने आने नहीं दिया, क्षमा करें, देवी!'
'तू वस्त्र बदलकर यहीं बैठ जा। मैं मातुश्री को प्रणाम कर अभी आ रही हूं।'
एक घड़ी बीत गई। कोशा ने पूछा- 'चित्रा ! उद्दालक मिला?' 'हां....' 'क्या जान पायी?'
'स्थूलभद्र प्रतिदिन सूर्योदय के बाद चार घटिका तक मंत्रीश्वर के जिन-मंदिर में प्रभु के समक्ष वीणावादन करते हैं और एक स्तवन गाते हैं। इसके अतिरिक्त वे कभी वीणावादन नहीं करते।'
'मंत्रीश्वर का जिनमंदिर ?'
'उनके भवन में ही वह मंदिर है। महामात्य शकडाल भगवान महावीर के उपासक हैं। उस मंदिर में भगवान की सुन्दर मूर्ति है।'
कोशा चिन्ता में डूब गई। चित्रा देवी कोशा को देखती रही। 'क्या हम मंत्रीश्वर के जिन मंदिर में जा सकती हैं ?'
'हां, कोई भी व्यक्ति दर्शन करने के लिए आ-जा सकता है, कोई प्रतिबंध नहीं है। उद्दालक ने कहा है कि सूर्योदय के बाद कोई भी व्यक्ति दर्शनार्थ आ सकता है।'
'अच्छा....आज मध्याह्न के बाद मातुश्री गंगा-स्नान करने के लिए जाने वाली हैं। हम सबको साथ जाना है। तू मेरे वस्त्र और अन्य सामग्री की तैयारी कर रखना।'
'किस ओर जाना है, देवी?' 'आचार्य के आश्रम की ओर ।' 'इस वर्षा में नौका-विहार?'
'इसका ज्ञान वत्सक को अधिक है'-कहकर कोशा उठी और बोली- 'मैं नृत्यखंड में जा रही हूं....चित्रलेखा प्रतीक्षा कर रही है।'
कोशा नृत्यगृह की ओर चली गई।
आर्य स्थलभद और कोशा
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