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________________ 'चित्रा! इधर आ।' चित्रा कोशा के सामने आकर खड़ी हो गई। 'तेरा उद्दालक कहां है?' 'स्थूलभद्र के पास।' चित्रा ने संकोच करते हुए कहा। 'स्थूलभद्र ?' 'जी।' 'वह कौन है?' 'महामंत्री शकडाल के ज्येष्ठ पुत्र।' 'ओह ! वीणावादक! हूं, और उद्दालक वहां क्या करता है?' 'वे स्थूलभद्र के अंगरक्षक हैं।' 'चित्रा! उद्दालक से तेरा मिलन कब होता है?' 'कोई निश्चित समय नहीं...कभी वे इधर आते हैं और कभी मैं वहां चली जाती हूँ।' 'महामंत्री के घर?' 'जी...' 'चित्रा....बार-बार एक इच्छा हो रही है।' 'क्या ?' 'क्या तू मेरे चेहरे को देखकर कुछ कल्पना कर सकती है?' चित्रा की ओर देखकर कोशा ने पूछा। 'देवी, आप मेरा परिहास तो नहीं कर रही हैं?' 'मेरे चेहरे को देखकर कोई कल्पना नहीं की जा सकती...अच्छा, मेरी इच्छा तेरे उद्दालक से पूरी हो सकती है।' 'कौन-सी इच्छा, देवी?' चित्रा कुछ भी समझ नहीं सकी। 'मगधेश्वर के समक्ष चाणक्य नाम के एक युवक ने कहा था-संसार में दो वस्तुएं आकर्षक हैं-एक मेरा नृत्य, दूसरी स्थूलभद्र का वीणावादन...' 'चाणक्य सही परीक्षक हैं।' 'मैं नहीं जानना चाहती। मुझे आकर्षक वीणावादन सुनना है और वीणावादक को देखना है।' आर्य स्थूलभद्र और कोशा ७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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