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________________ कोशा के मन से चाणक्य के ये दो वाक्य निकल नहीं रहे थे-जगत् की दो वस्तुएं आकर्षक हैं- एक है कोशा का नृत्य और दूसरी है स्थूलभद्र का वीणावादन। ___ चाणक्य ने जो कहा वह सत्य है। हृदय के तार को झंकृत करने में समर्थ स्थूलभद्र का वीणावादन कोशा ने दूर से सुना था और इसीलिए स्थूलभद्र को भूल नहीं पा रही थी। स्थूलभद्र की वीणा के दर्शन स्वप्न में होते हैं और साथ ही साथ कामदेव का कोई अदृष्ट रूप भी आता है। मगधेश्वर की उपस्थिति में सुने हुए शब्द कोशा के हृदय को बींध रहे थे। वह उन्हें भूल नहीं पा रही थी। एक बार स्थूलभद्र को देखना चाहिए। किन्तु हृदय का यह अभिसार कैसे व्यक्त किया जाए? कोशा के प्राण हंसकर उत्तर देते हैं--कोशा, तू कैसी नर्तकी? तेरे में इतनी भी योग्यता नहीं है? तू अभिसारिका का नृत्य कर पत्थर की प्रतिमाओं को भी पागल बना देती है....ऐसी स्थिति में अपने हृदय के अभिसार को व्यक्त करने में क्या तुझे कोई मार्ग नहीं मिलता? लगता है तूनर्तकी नहीं रही, नारी बन गई है। कोशा का मनोमन्थन सीमातीत हो गया। ग्रीष्म का उत्ताप शांत हो चुका था। वर्षा की शीतलता सर्वत्र व्याप्त थी, किन्तु कोशा के हृदय का उत्ताप अनन्त ग्रीष्मों से भी अधिक हो रहा था। मध्याह्न की वेला। अभी-अभी वर्षा शांत हुई है। शीतल पवन प्रवहमान है। कोशा अपने निवास-खंड में अकेली बैठी है। चित्रा बार-बार आती है और चली जाती है। देवी सुनन्दा तीन वर्ष की अपनी छोटी बच्ची को कुछ सिखा रही है। विलासभवन पूर्ण शांत और नि:शब्द है। चित्रा कोशा के खंड में आकर बोली- 'देवी! शरीर स्वस्थ न हो तो वैद्यराज को बुलाने की व्यवस्था करने के लिए मां ने कहा है।' ७१ आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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