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मगधेश्वर का वदन हर्ष से उल्लसित हो गया। आचार्य के चेहरे पर विजय का संदेश पढ़ा जा रहा था। महामात्य शकडाल के नयनों का आश्चर्य ज्यों का त्यों था। चाणक्य का हृदय पुकार रहा था-धन्य साधना....धन्य साधना!
हाथ में श्वेत पुष्पों की माला लेकर कोशा मगधेश्वर के पास आयी, नमस्कार कर उसने राजा के चरणों में माला रख दी। उसने महादेवी को नमस्कार किया, उनके गले में माला पहनाई। आचार्य के चरणों में नमस्कार किया, उन्हें माल्यार्पण किया। चाणक्य और शकडाल को भी माला अर्पित की। ___ मगधेश्वर ने आचार्य से कहा-'आचार्यदेव! मैं कोशा के नृत्य से अत्यन्त प्रभावित हुआ हूं। यह भारत की श्रेष्ठतम नृत्यांगना बनने योग्य है।'
राजा ने अपने गले से बहुमूल्य हार निकालकर कोशा को देते हुए कहा- 'कोशा, तू वास्तव में ही कला-लक्ष्मी है।'
महादेवी ने भी अपने गले से हीरों का हार निकालकर कोशा को देते हुए कहा- 'कोशा! तेरी कला-कीर्ति इस हार जैसी उज्ज्वल हो।'
चाणक्य ने आचार्य को नमस्कार कर कहा- 'आचार्य देव ! मैं आज मगधपति के सम्मुख अपनी पराजय स्वीकार करता हूं। आपने एक योग्य उत्तराधिकारी का चुनाव किया है। देवी कोशा के नृत्य को देखकर मैं अत्यन्त प्रसन्न हूं। मैं आज यह गर्व के साथ कह सकता हूं कि भारत में मुझे दो बातों ने आकृष्ट किया है-एक है कोशा का नृत्य और दूसरा है स्थूलभद्र का वीणावादन...' _ 'स्थूलभद्र का वीणावादन?' आचार्य ने आश्चर्य से पूछा।
'जी हां....' कहकर चाणक्य ने कोशा की ओर देखा । स्थूलभद्र का नाम सुनते ही कोशा के नयन कुछ चंचल बन गए।
चाणक्य समझ गया कि शब्दों ने असर किया है। महामात्य शकडाल भी चाणक्य की बात को भांप गए। और कोशा के हृदय में?
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आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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