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इन सभी गुणों से अवगति प्राप्त कर मगधेश ने उसे राजनर्तकी के रूप में मान्य किया है।'
चाणक्य आश्चर्य-भरी दृष्टि से आचार्य का निहारता रहा। 'क्या अभी भी तुम्हारा आश्चर्य दूर नहीं हुआ?' आचार्य ने पूछा।
'संभव है वह दूर न हो पाए। मेरे मन में यह प्रश्न बार-बार उभर रहा है कि राजनर्तकी होने वाली नारी क्या अपनी साधना और जीवन को निष्पाप रख सकेगी?'
'तुमने अभी कोशा को देखा नहीं है इसलिए यह प्रश्न कर रहे हो।' 'परन्तु गुरुदेव ! मैं ऐसी स्त्रियों को देखना नहीं चाहता।'
'यौवन चंचल है, यह सच है, किन्तु संयम उसको स्थिरता प्रदान कर सकता है। कोशा संयम की पूर्ति है। आषाढ़ शुक्ला द्वितीया की रात्रि में मगधपति कोशा की साधना का साक्षात्कार करने जाएंगे। उस समय मैं
और महामंत्री भी उनके साथ रहेंगे। यदि तुम मेरे साथ चलोगे तो तुम्हारे प्रश्न का सहज ही समाधान हो जाएगा और तुम्हें यह विश्वास भी हो जाएगा कि मेरी शिष्या कोशा मेरी साधना की योग्य अधिकारिणी है।' ____चाणक्य की आंखें कौतूहल से चमक उठीं। वह बोला-'आचार्यदेव! मैं आपके इस आमंत्रण को सहर्ष स्वीकार करता हूं। उस दिन आपके साथ रहने में मुझे आनन्द अवश्य ही होगा।'
चाणक्य कुछ देर वहां ठहरा और फिर वहां से विदा हो गया।
आचार्य कुमारदेव भी अपने अतिथियों का साथ देने गंगा की ओर चल पड़े।
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आर्य स्थलभद और कोशा
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