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________________ चाणक्य ने संगीताचार्य को नमस्कार करते हुए कहा- 'आपको देखकर मुझे असीम आनन्द का अनुभव हुआ है। जब कभी मैं तक्षशिला आऊंगा, तब आपका यह अल्पकालिक परिचय मेरे लिए उपयोगी सिद्ध होगा।' सुमित्रानन्द ने आशीर्वाद देते हुए तक्षशिला आने का आग्रह भरा निमंत्रण दिया। आसावरी राग का स्वर कल्लोलपूर्ण हो चुका था। शिष्यों ने आचार्य की ओर देखा। आचार्य बोले- 'आप सभी अतिथियों को लेकर गंगा के तट पर चलें, मैं अभी आ रहा हूं।' ___संगीताचार्य सुमित्रानन्द आदि अतिथि शिष्यों के साथ गंगा के तट की ओर चल पड़े। उन सबके चले जाने पर आचार्य ने चाणक्य से कहा-'तुम मेरे कुटीर में आए हो। मैं मानता हूँ कि बिना प्रयोजन तुमने कभी यहां पैर नहीं रखा। बोलो, किस काम से यहां आए हो?' 'कोई मुख्य कार्य नहीं है। मैं अभी-अभी राजगृह गया था। वहां चणकमुनि ने आपको धर्मलाभ कहा है। दूसरी बात है कि लम्बे समय से मैं आपके दर्शनों से वंचित रहा। आज मैं आपके दर्शन कर कृतकृत्य हुआ हूं।' 'चणकमुनि के सुखसाता तो है?' 'हां, वे परम प्रसन्न हैं।' थोड़े समय तक दोनों मौन रहे। फिर चाणक्य बोला-'कुछ दिन पूर्व ही महामात्य आपके ज्ञान की भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहे थे। वे कह रहे थे- हम तीन बाल-मित्र थे। एक ने संसार का त्याग कर दिया, दूसरा राजा बना और आप संगीत-साधक बने। यह चर्चा सुनकर मेरे मन में आपके दर्शनों की उत्कट अभिलाषा जागी और मैं यहां आपसे एक प्रार्थना करने आ गया। आप वृद्ध हो चुके हैं। मैंने सुना है कि आप सब कुछ त्यागकर राजगृही नगरी में स्थित आनन्दविहार में निवास करेंगे। यदि यह सत्य है आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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