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________________ 'मैं महामंत्री शकडाल का प्रिय शिष्य विष्णुगुप्त हूं। क्या आचार्य कुमारदेव यहां हैं?' 'जी, वे यहीं हैं।' 'मैं उनके दर्शन करना चाहता हूं।' 'आप मेरे साथ चलें'-यह कहकर ब्राह्मण युवक आगे चला। विष्णुगुप्त उसके पीछे-पीछे कुटीर में गया। कुटीर के प्रांगण में संगीताचार्य सुमित्रानन्द आदि अतिथियों के मध्य आचार्य कुमारदेव बैठे थे। उनके शिष्यगण विभिन्न वाद्यों पर 'आसावरी' राग का आलाप कर रहे थे। ब्राह्मण युवक ने आचार्य कुमारदेव को नमस्कार करते हुए कहा- 'गुरुदेव ! महामंत्री शकडाल के शिष्यरत्न विष्णुगुप्त आपसे मिलना चाहते हैं।' चणकपुत्र चाणक्य की प्रसिद्धि व्यापक थी। पाटलीपुत्र की जनता चाणक्य को महान तेजस्वी और प्रखर बुद्धि सम्पन्न मानती थी। आचार्य कुमारदेव ने प्रेमभाव से चाणक्य का सत्कार करते हुए कहा- 'आओ, विष्णु! तुम्हारी प्रतिभा हमको भी आकर्षित कर रही है।' चाणक्य ने नमस्कार कर, एक आसन पर बैठते हुए कहा- 'आपकी प्रतिभा ने मुझे आकर्षित किया है। आप कुशल तो हैं ?' 'धर्म की कृपा से पूर्ण कुशलक्षेम है। आज तुमने इस वृद्ध को कैसे याद किया?' आचार्य ने मुसकराते हुए कहा। 'मैं सहज ही इस ओर से गुजर रहा था। आपके दर्शनों की उत्कण्ठा जागी और मैं आपके चरणों में आ गया।' यह कहते हुए चाणक्य ने सामने बैठे दूसरे अतिथियों की ओर दृष्टिपात किया। आचार्य कुमारदेव ने संगीताचार्य सुमित्रानन्द की ओर देखते हुए कहा- 'ये मेरे बालस्नेही चणक के पुत्र और महामंत्री शकडाल के तेजस्वी शिष्य विष्णुगुप्त हैं। ये न्यायतर्क और नीतिशास्त्र के पारंगत विद्वान् हैं और मगधदेश के रत्न हैं।' तत्पश्चात् चाणक्य की ओर देखते हुए कहा-'ये तक्षशिला विद्यापीठ के संगीतगुरु सुमित्रानन्द हैं। ये भारतीय संगीत का समन्वय करते हुए एक संगीत-शास्त्र की रचना कर रहे हैं। ये हमारे अतिथि हैं।' आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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