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८. आचार्य के पास
कुक्कुटपाद विहार से एक कोस की दूरी पर एक सुन्दर वाटिका थी। उसमें चार-पांच कुटीर थे। कुटीरों के आस-पास हंस, मयूर, सारस, मृग आदि सुन्दर प्राणी खेल रहे थे। वाटिका में सुन्दर वृक्ष, लताएं और पौधे लगे थे। विविध प्रकार के पुष्पों की सौरभ से सारा वातावरण मधुर बना हुआ था।
वाटिका के दक्षिण भाग में एक सुन्दर कुटीर थी। उसमें आचार्य कुमारदेव रहते थे। आस-पास की चार अन्य कुटीरों में अतिथि और शिष्य रहते थे।
सूर्योदय हो चुका था। प्रात:कार्य से निवृत्त होकर आचार्य कुमारदेव अपने शिष्यों को संगीत का अभ्यास करा रहे थे। वाद्यों के नाद से वाटिका गूंज रही थी।
दस-बारह दिनों से तक्षशिला विद्यापीठ के संगीताचार्य सुमित्रानन्द आचार्य कुमारदेव के अतिथि थे। वे दोनों उत्तरापथ और दक्षिणापथ में प्रचलित संगीत विद्याओं का समन्वय साध रहे थे।
__उसी समय सम्मुख दिख रहे घाट पर एक मयूर नौका आयी और वहां खड़ी हो गयी। नौका में से एक तेजस्वी युवक उतरा और घाट पर गम्भीर गति से चलता हुआ वाटिका की ओर आगे बढ़ा। युवक का शरीर अनावृत्त था। उसका मस्तक उन्नत, भुजाएं विशाल, नयन तेजस्वी तथा मुखाकृति कठोर थी। यह महामात्य शकडाल का प्रिय शिष्य चाणक्य था।
चाणक्य वाटिका में प्रविष्ट हुआ। उसने चारों ओर देखा और दक्षिण दिशा में स्थित कुटीर की ओर आगे बढ़ा।
कुटीर के द्वार पर एक ब्राह्मण युवक बैठा था। वह तेजस्वी युवक चाणक्य को देखते ही उठा और उसका स्वागत करने आगे बढ़ा। उसने विनम्रभाव से पूछा-'आप कौन हैं? आपका परिचय क्या है?'
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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