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'तो फिर ?'
'ऐसी नवयौवना हो, जिसकी प्रतिभा तीक्ष्ण हो, जिसका रूप अजोड़ हो, जिसका संगीत दिव्य हो.....ऐसी जाज्वल्यमान कोई युवती मिल सकेगी ?'
महामंत्री विचारमग्न हो गए।
चाणक्य ने कहा- 'पाटलीपुत्र में ऐसी कोई रूपवती स्त्री आपको ज्ञात है ?'
शकडाल ने कहा- 'मेरा अन्तरचित्त कहता है कि इस प्रयत्न से भी स्थूलभद्र का मन संसार के प्रति अनुरक्त नहीं हो पाएगा।'
'मेरा मन कहता है कि वे संसार की ओर मुड़ जायेंगे। जिसके हृदय में संगीत के प्रति दर्द है, उसके हृदय में नारी के प्रति सहानुभूति पैदा होगी । किन्तु स्थूलभद्र एक ऐसे युवक हैं, जिनकी प्रतिभा को अपने रूप से ढंक सकने वाली अपूर्व नारी आवश्यक है।'
'हां .... विष्णु ! यह प्रश्न धर्मसंकट में डालने वाला है।' 'इसीलिए यह अन्याय अन्याय नहीं है।'
'अन्याय तो सदा अन्याय ही रहेगा, किन्तु पुत्र के प्रति रहे हुए मेरे प्रेम के लिए .... अपने स्वार्थ के लिए..
'मुझे सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी की खोज करनी होगी।' चाणक्य ने कहा । 'रूप, गुण, कला और गौरव में बेजोड़ एक युवती के विषय में मैंने सुना अवश्य है।'
'वह युवती कहां रहती है ?'
'पाटलीपुत्र में ।'
'पाटलीपुत्र में ! वह कौन है ? विवाहित है या अविवाहित ?' 'हां .... अविवाहित है और जीवनभर अविवाहित रहने वाली है मगधेश्वर की राजनर्तकी सुनन्दा की पुत्री कोशा सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी है। वह शरद् पूर्णिमा को राजनर्तकी का गौरवपूर्ण पद ग्रहण करेगी।'
चाणक्य विचारमग्न हो गया। पलभर बाद हर्षित हृदय से महामंत्री की ओर देखकर कहा - 'मुझे याद आ गया। गंगा के किनारे उसका भवन है । '
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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