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'हां, परन्तु मेरा विचार है कि रक्तपात के बिना ही समस्या सुलझ जाए। सौरदेव चाहता है कि उस विद्रोह को उग्रता से दबाया जाए। किन्तु दमन से सत्ता टिकती नहीं, हिल उठती है।'
'अन्तिम निर्णय क्या रहा?'
'दमन नहीं करना है। चन्द्रायुध को गांधार भेज दिया है। भेद-नीति से सब व्यवस्थित हो जाएगा।'
कुछ समय तक नीरवता बनी रही। नीरवता को भंग करते हुए महामंत्री ने कहा- 'स्थूलभद्र के विषय की चर्चा का कोई शुभ परिणाम निकला?'
'शुभ परिणाम तो नहीं निकला, किन्तु कुछ आशा.....स्थूलभद्र अध्यात्म में इतने रंग गए हैं कि सांसारिक कर्तव्य की ओर दृष्टिपात करना भी नहीं चाहते। केवल संगीत के प्रति उनका अनुराग है, बस....' चाणक्य ने कहा।
'बचपन से ही स्थूलभद्र का स्वभाव कुछ अड़ियल है। विवाह के विषय में कोई बात चली?'
'हां....विवाह करने के लिए वे किसी भी स्थिति में सहमत नहीं हैं। किन्तु इसके लिए मुझे एक अन्याय करना होगा।'
'अन्याय?'
'हां....इसके बिना स्थूलभद्र नारी के प्रति आकृष्ट नहीं होंगे। इन्हें स्त्रियों के बीच रखकर, स्त्री के प्रति अनुराग उत्पन्न करना होगा।' चाणक्य ने अपनी सारी योजना बतलायी।
__महामंत्री हंस पड़े। हंसते-हंसते बोले-"विष्णु! यह प्रयत्न तो मैं पहले ही कर चुका हूं। स्त्री कितनी ही रूपवती क्यों न हो, स्थूलभद्र उससे दूर रहता है। दो-तीन मास पूर्व ही मगधेश्वर की चार परिचारिकाओं को स्थूलभद्र के लिए संयोजित किया था, किन्तु वे चारों दूसरे ही दिन राजभवन में चली गईं। __'परिचारिकाओं से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा।'
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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