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७. अन्याय
'पिताजी कब आयेंगे, यक्षा?'
'पिताजी तो यहीं हैं। महासेनापति और भांडागारिक के साथ कुछ मंत्रणा कर रहे हैं। अभी निवृत्त हो जायेंगे। आप बैठे-आपके लिए ब्राह्मीपानक तैयार करने के लिए दासी को कह रही हूं'- यक्षा ने सद्य: आए चाणक्य से कहा।
चाणक्य ने विश्रामगृह में बैठते हुए यक्षा से कहा-- 'बहन ! तेरा अभ्यास कहां तक बढ़ा है?'
'न्याय और तर्कशास्त्र का अध्ययन पूरा हो चुका है। अब जैन आगमों का पारायण करने की इच्छा है'- महामंत्री की ज्येष्ठ कन्या यक्षा ने कहा।
'जैन आगमों का अध्ययन करने के लिए तुझे किसी जैन आचार्य के पास जाना होगा।'
'हां, इस वर्ष पिताश्री के उपाश्रय में कोई-न-कोई आचार्य या मुनि अवश्य आयेंगे।'
'यक्षा ! तेरी विचारधारा भी स्थूलभद्र जैसी ही लगती है ?' चाणक्य ने कहा।
यक्षा मौन रही।
एक परिचारिका स्वर्ण-पात्र में ब्राह्मी-पानक लेकर आयी। चाणक्य ने धीरे-धीरे ब्राह्मी-पानक का पान किया। यक्षा ने मौन भंग कर कहा'आप बैठे....पिताजी मंत्रणागृह से निकलेंगे, तब मैं आपको बता दूंगी।'
यक्षा कक्ष के बाहर चली गई। परिचारिका पानक का खाली पात्र लेकर चली गई। चाणक्य गुरुदेव की प्रतीक्षा में शान्त बैठे रहे।
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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