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'मगधेश्वर मानते हैं कि मगध की राजनर्तकी मगध की कला-लक्ष्मी है। वह सम्राट् की प्रतिष्ठा का प्रमुख अंग है। मगध की कला-लक्ष्मी केवल कला की ही जननी रहे। सम्राट् की आज्ञा के बिना वह किसी पुरुष की पत्नी या सहचरी नहीं बन सकती। चारित्र्य-विहीन कला कभी जीवित नहीं रह सकती। वह मगधेश्वर की प्रतिष्ठा का अंग है अत: इसमें किसी प्रकार का चारित्रिक दोष नहीं आना चाहिए। यदि कभी इसमें स्खलना हो गई तो सम्राट् तेरा वध कराने में भी नहीं हिचकेंगे।'
प्रेरणापूर्ण हास्य बिखेरती हुई कोशा बोली- 'मां! मैं तुम्हारी पुत्री हूं। मेरे शरीर में लिच्छवियों का रक्त प्रवहमान है। तुमने मुझे जो संस्कार दिए हैं, उन संस्कारों ने मेरे प्राणों में अमर नारीत्व की प्रतिष्ठा की है। मगधपति की यह शर्त मेरे लिए तनिक भी कठोर नहीं है।'
'कोशा! तेरे मनोभावों का मैं सत्कार करती हूं। किन्तु इस प्रश्न पर तुझे गम्भीरता से सोचना है। रूप, वैभव, संगीत, कला और यौवन के मदभरे क्षणों के बीच रहकर चरित्र की पूजा करना सहज सरल नहीं है। जिस दिन तू राजनर्तकी के गौरवपूर्ण पद को ग्रहण करेगी, उसी दिन से भारतवर्ष के विलासी, धनवान और सत्ताधीश पुरुष तुझे पाने के लिए तेरे मार्ग में नाना प्रलोभनों का आकर्षण प्रस्तुत करेंगे। रूप के भण्डार तेरे शरीर का उपभोग करने के लिए तथा तेरे यौवन को अपनी प्रेरणा बनाने के लिए राजा-महाराजा, सार्थवाह, महासेनापति और सेठ तेरे समक्ष मायाजाल रचेंगे। इन सभी आकर्षणों में अटल रहना सरल नहीं है। मगधेश्वर की अतुल समृद्धि, सत्ता और सम्पत्ति से मदान्ध बने राजपुरुषों तथा पाटलीपुत्र की यौवनश्री से अठखेलियां करने वाले युवकों तथा अन्य देशों के यौवन-पिपासी राजाओं की कामनाओं से तुझे अविरत लड़ना होगा। इस युद्ध में यदि तू पराजित हुई तो तेरा वध कर दिया जाएगा और इसके साथ ही साथ भारतवर्ष की नृत्यकला पर कलंक की कालिमा लग जाएगी। देवी आम्रपाली का इतिहास तू जानती है ? वह मगध की एक अत्यन्त रूपवती नर्तकी थी। उसके यौवन की माधुरी ही वैशाली के विनाश
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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