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बनने के पश्चात् कोशा मेरी नहीं रहेगी, वह मगध की कलालक्ष्मी बन जाएगी। वह मगधपति के निर्दोष आनन्द की जननी बनेगी।'
'देवी! तुम्हारे शब्दों पर मुझे और सम्राट को पूर्ण विश्वास है। मगधेश्वर जिस दिन उसे राजनर्तकी का पद देंगे, वह हमारे लिए भी गौरवमय दिन होगा।' __महामंत्री ने मगधेश्वर की ओर देखा । मगधेश्वर ने सुनन्दा से कहा'सुनन्दा ! महामंत्री की चेतावनी को भूल मत जाना। कोशा राजनर्तकी होगी, तब उसके समक्ष अनेक प्रलोभन आएंगे....और कोशा उस समय अपना गौरव भूल जाएगी तो उसका वध कर दिया जाएगा। यदि तुझे शीघ्रता न हो तो शरद पूर्णिमा के शुभ दिन की हम प्रतीक्षा करें। अभी पांच मास शेष हैं। इस उत्सव के लिए हम देश-देशान्तर से अनेक व्यक्तियों को आमंत्रित करेंगे और तुम भी कोशा को और अधिक तैयार कर सकोगी।' ___ 'जैसी आपकी आज्ञा ! कोशा ने नृत्य, कला, चित्रकला और संगीतकला में पूर्णता प्राप्त की है। जो नृत्य आम्रपाली के लिए भी असाध्य था, उस नृत्य को भी कोशा ने हस्तगत कर लिया है। आप आशीर्वाद दें, कोशा मगधदेश की गौरवमूर्ति बने।' सुनन्दा के नयनतट पर आंसुओं की दो बूंदें स्वाति की बूंदों की तरह चमक रही थीं।
मगधेश्वर ने कहा- 'सुनन्दा ! आचार्य कुमारदेव ने मुझे सारी बात बता दी है। कोशा राजनर्तकी बने, इससे पूर्व हम तुम्हारे अतिथि बनेंगे। उस दिन कोशा की निपुणता को देखकर हम उसे आशीर्वाद देंगे।'
सुनन्दा के हर्ष का आर-पार नहीं रहा।
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आर्यस्थूलभद्र और कोशा
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