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देने का निर्णय कर चुके हैं। तुम्हारा स्थान कोशा ले, यह प्रसन्नता की बात है। किन्तु तुम्हें एक बात कोशा को बता देनी होगी!'
सुनन्दा ने उत्साहभरी नजरों से महामन्त्री को देखते हुए पूछा'क्या बात?'
महामन्त्री ने कहा- 'वैशाली की विजय के पश्चात् जब तुम्हें यहां लाया गया था, तब कुछेक शर्ते रखी थीं। तुम्हें वे याद हैं ?'
'जी हां।'
'कोशा के लिए भी ये ही शर्ते हैं। मगध-सम्राट् साहित्य, कला और संगीत के पुजारी हैं। जीवन के ये निर्दोष तत्त्व सदा निर्दोष ही रहने चाहिएयह सम्राट् की मान्यता है । कला और संगीत जीवन-उत्कर्ष के परम साधन हैं। ये साधन लालसा से प्रतिहत नहीं होने चाहिए। कोशा भारतवर्ष की बेजोड़ सुन्दरी है, मैंने सुना है। ज्ञान और संस्कार की दृष्टि से भी तुम्हारी कन्या आदर्श है किन्तु कोशा यौवन में पदार्पण कर रही है.... यौवन का वेग तीव्र होता है, इसे सहन कर पाना कठिन है। मगधेश्वर की जो कलालक्ष्मी बनती है, उसे अपनी वृत्तियों का उपभोग देना पड़ता है, जिससे कि वह मगध देश के सम्मान और आदर्श को अक्षुण्ण रख सके। तुम्हारे स्थान पर कोशा आएगी....तब वह कोशा नहीं रहेगी। वह मगधेश्वर की राजनर्तकी बनेगी....मगध की कलालक्ष्मी बनेगी। कोशा में ऐसा मनोबल होना जरूरी है। मगधेश्वर की आज्ञा के बिना मगध की कलालक्ष्मी किसी भी पुरुष को अपना साथी नहीं बना सकेगी और वह किसी भी पुरुष की सहचरी नहीं बन सकेगी....मात्र कला की सहचरी। मगधेश्वर का एक भी अंग दोषी नहीं होना चाहिए। राजनर्तकी भी मगधेश्वर का एक अंग है। मगधेश्वर की मर्यादा और मगध के कलाप्रेमी पुरुषों की इज्जत की रक्षा करना राजनर्तकी का कर्तव्य है।'
सुनन्दा ने हर्षभरे स्वर में कहा-'आचार्य कुमारदेव के संस्कारों में ढली हुई कोशा मगधेश्वर की मर्यादा का पालन अवश्य करेगी। मगधेश्वर की राजनर्तकी के पद का गौरव मैं समझती हूं। मगधेश्वर की राजनर्तकी
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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