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________________ विमलसेन नमस्कार कर बाहर आने के लिए मुड़ा। वह द्वार तक पहुंचा ही होगा कि शकडाल ने कहा- 'सौरदेव अकेले ही मेरे घर आएं। और सुनो, तुम्हारे बन्दीगृह में गांधार के जो गुप्तचर हैं, उनको भी तुम मेरे घर ले आना।' 'जैसी आज्ञा', कहकर विमलसेन द्वार के बाहर निकल गया। महामंत्री वहां से चले। उसी समय एक प्रतिहारी ने आकर सम्राट् से निवेदन किया- 'देव! राजनर्तकी देवी सुनन्दा आपसे मिलना चाहती है।' ____ मगधपति ने महामंत्री की ओर देखा। महामंत्री पुन: कमरे में आकर अपने आसन पर बैठ गए। सम्राट् ने प्रतिहारी से कहा-जाओ, उसे यहां ले आओ।' प्रतिहारी नमस्कार कर चला गया। घननन्द ने कहा- 'सुनन्दा की इच्छा संसार त्यागने की है। उसकी एक सुन्दर पुत्री है। उसके विषय में कुछ प्रस्ताव लेकर आ रही हो, ऐसा संभव है।' 'मैं इस बात से परिचित हूं। आचार्य कुमारदेव के संस्कारों ने सुनन्दा के हृदय में भक्ति की ज्योति जगाई है। इसकी पुत्री कोशा आज जन-जन में विख्यात हो रही है। मैंने सुना है कि कोशा अत्यन्त रूपवती, जाज्वल्यमान और कला की प्रतिमूर्ति है। आचार्य कुमारदेव की यह शिष्या है। सुनन्दा अपना राजनर्तकी का स्थान इसे दिलाना चाहती है। यह उचित ही है।' सुनन्दा ने मंत्रणागृह में प्रवेश किया। उसने मगध-सम्राट् को तीन बार नमस्कार किया। महामन्त्री शकडाल को प्रणाम कर वह खड़ी रही। महाराज ने कहा- 'सुनन्दा, बैठो।' सुनन्दा एक आसन पर बैठ गई। महामन्त्री शकडाल ने कहा- 'देवी! तुम संसार का परित्याग कर महात्मा बुद्ध के मार्ग का अनुसरण करना चाहती हो, यह समाचार मगधेश्वर को प्राप्त हो चुका है। इस पवित्र कार्य के प्रति सम्राट् की सहानुभूति है। तुम अपनी पुत्री कोशा के लिए जो स्थान चाहती हो, महाराज उसे वह स्थान ३७ आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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