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________________ शकडाल के प्रयत्नों से ही समृद्ध बना था। मगधराज घननन्द का कोशागार शकडाल के प्रयत्नों से ही भरा-पूरा रहता था। गांधार, मालव, काशी, बंगल, पार्वत्य, कामरूप, गुर्जर आदि देशों पर मगधेश्वर का प्रभाव महामात्य शकडाल की बुद्धि का आभारी था। मगधेश्वर जानते थे कि शकडाल नहीं है तो मगध नहीं है। शकडाल नहीं है तो भारत में मगध का आज्ञा-वर्तन नहीं है और शकडाल नहीं है तो स्वर्ग को लज्जित करने वाली यह मगध देश की ऋद्धि-सिद्धि भी नहीं है। __मगध की जनता को विश्वास था कि शकडाल के कारण ही आज मगध की प्रजा सुखी है, समृद्ध है, वैभव से परिपूर्ण और धर्म तथा सदाचार में अग्रणी है। प्रजा यह अच्छी तरह जानती थी कि शकडाल के वर्चस्व के कारण ही सारे देश में सन्ताप, अत्याचार और त्रास नहीं है। सर्वत्र सुख ही सुख है, आनन्द ही आनन्द है। शकडाल मगध के प्राण थे। मगध उनका जीवन था। शकडाल और मगध अभिन्न थे। काल की अपरिमेय शक्ति भी इस एकता को खण्डित करने में असमर्थ थी। महामंत्री शकडाल अपने विश्रामगृह में अकेले बैठे थे। द्वार पर दो परिचारक आज्ञा की प्रतीक्षा में खड़े थे। खण्ड में नाजुक दीपशिखा सोनेरी प्रकाश फैला रही थी। महामंत्री के चेहरे से यह स्पष्ट परिलक्षित हो रहा था कि वे उस समय किसी गम्भीर विचार में मग्न हैं। उनकी दृष्टि ध्यानमग्न थी। वे कभीकभी द्वार की ओर देख रहे थे। लगता था, वे किसी के आगमन की प्रतीक्षा में बैठे थे। वे पूर्ण स्वस्थ दिख रहे थे। उनके कंधे पर एक उत्तरीय वस्त्र अस्तव्यस्त रूप में पड़ा था। उनके वक्षस्थल पर रही हुई नीलमणि की माला प्रकाश में जगमगा रही थी। एक घटिका व्यतीत हुई। एक परिचारक ने खण्ड में प्रवेश कर विनम्र स्वर में कहा, 'महाराज! श्री विष्णुगुप्त आपकी आज्ञा की प्रतीक्षा कर रहे हैं।' आर्य स्थूलभद्र और कोशा २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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