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________________ कोशा की आज्ञा प्राप्त कर मुनि चित्रशाला के कामगृह खंड में चले गये । मुनि का व्यक्तित्व असाधारण था । उनका दीक्षा - पर्याय बहुत लम्बा था। उन्होंने घोरतम तपस्याएं की थीं। उनका शरीर के प्रति कोई ममत्व नहीं था। वे ऋतुधर थे। धर्म के तत्त्व उनकी रग-गर में रक्तगत हो गए थे । उनका सारा जीवन त्याग और संयम के मार्ग पर दृढ़, अचल और पवित्र रहा था । कामगृह में प्रवेश करते ही मुनि की दृष्टि भित्तिचित्रों पर पड़ी। चित्रों में यौवन का उभार छलक रहा था, विलास की कामना प्रत्यक्ष हो रही थी और प्राप्ति की तृप्ति भी दृष्टिगोचर हो रही थी । चित्रों को देखकर मुनि ने सोचा- कितने अश्लील हैं ये चित्र ! स्थूलभद्र को यह स्थान कैसे पसन्द आया ? तपस्वी मुनि ने यह सब देखकर आंखें बन्दकर लीं, किन्तु अभिग्रह के कारण अपना आसन वहीं बिछा लिया । पन्द्रह दिन बीत गए । वर्षा का प्रारम्भ हो गया। कोशा पूर्ण भक्ति और श्रद्धा से मुनि की उपासना करने लगी। बहुत बार ऐसा होता है कि जो वस्तु प्रीतिकर नहीं लगती, उसके प्रति मन बार-बार दौड़ता है मुनि बार-बार नग्न चित्रों की ओर देखते और ये सभी चित्र अप्रीतिकर होने पर भी मुनि के चित्त को चंचल बना देते । चित्र न देखने का निश्चय कर मुनि आंखें मूंद लेते, किन्तु चंचल मन कह उठता- 'यदि इन निर्जीव चित्रों से भयभीत होगा तो तेरे तपस्वी जीवन का मूल्य ही क्या होगा ?' और तत्काल मुनि चित्रों की ओर देखने लगते । किन्तु मुनि को प्रतीत होता कि चित्र निर्जीव होने पर भी हृदय में उथल-पुथल मचा देते हैं। बहुत बार वे सोचते - मैं कहां आ गया ? किसी महाज्वाला के बीच बैठा हूं या महाशीलता के बीच में ? २७६ Jain Education International आर्य स्थूलभद्र और कोशा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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