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सिंह गुफावासी ने गुरु की स्वीकृति के बिना ही पाटलीपुत्र की ओर विहार कर दिया।
आर्य स्थूलभद्र आचार्य के साथ ही रहे। गुरुदेव उन्हें विशेष अभ्यास कराना चाहते थे।
और पाटलीपुत्र में देवी रूपकोशा जीवन के मंगलमय परिवर्तन की पांखों से ज्ञान-मार्ग में उड़ रही थी।
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आर्यस्थूलभद्र और कोशा
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