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कोशा ने मस्तक नमाया ।
आचार्य ने उसे एक स्वर्ण पात्र में बीस मात्राएं रसायन की देकर कहा - 'पुत्री ! तेरी मनोकामना को पूर्ण करने वाला यह अमृत है। शुभ दिन का योग देखकर इसका प्रयोग प्रारम्भ कर देना ।'
कोशा और चित्रा ने प्रसन्नचित्त से प्रस्थान किया ।
पांच दिन बाद प्रयोग प्रारम्भ हुआ।
कोशा प्रतिदिन औषधियुक्त उत्तमोत्तम पक्वान्न बनाकर स्थूलभद्र के पात्र में डालने लगी और उसने स्थूलभद्र के आसन के सामने बैठकर प्रणय, मिलन और विरह के भाव भरे गीत गाने प्रारम्भ किए।
और......
औषधियुक्त पक्वान्न, षड्रसपूर्ण आहार और उत्तमोत्तम पदार्थों का भोजन करते-करते स्थूलभद्र ने बीस दिन बीता दिए । आर्य स्थूलभद्र को यह कल्पना भी नहीं थी कि भोजन में औषधि मिलाई जा रही है। उनके मन पर कोई असर नहीं हुआ ।
एक दिन और शेष था । कोशा उसी के आशा - तंतु को पकड़े जी रही थी। उसे अंतिम दिन नृत्य करना था । उर्वशी ने अर्जुन के समक्ष जो नृत्य किया था, कोशा वही नृत्य कामगृह में स्थूलभद्र के समक्ष करने वाली थी। वह नृत्य सामान्य नहीं था.... दिव्य औषधि से भी दिव्य था .... वह नृत्य था 'अनंग प्रभाव' । यह उसका अंतिम शस्त्र था । उसने सोचा, कल मेरी साधना का अंतिम दिन होगा। या तो मैं अपने स्वामी को विलासगृह में ले जाऊंगी या सदा-सदा के लिए नृत्य करना छोड़ दूंगी।
चित्रा यह निर्णय सुनकर दिग्मूढ़ हो गई। उसमें कुछ भी कह सकने का साहस नहीं था। उसने देख लिया था कि बीस-बीस दिनों तक दिव्य औषधियुक्त पक्वान्न खाने पर भी स्थूलभद्र में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है तो 'अनंग प्रभाव' नृत्य क्या परिवर्तन लाने में सक्षम हो सकेगा ?
सबके मन में एक ही प्रश्न था । उत्तर किसी के पास नहीं था। अंतिम शस्त्र के प्रयोग की बात से कोशा के प्राणों में प्रेरणा जागी । पर बेचारी नहीं जानती थी कि कौन जीतेगा, कौन हारेगा ?
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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