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________________ ४७. नयी चेतना मुनि स्थूलभद्र के साथ बातचीत कर कोशा चित्रशाला से बाहर आयी । उस समय उसके वदन पर प्रसन्नता की रेखाएं उभर रही थीं। लग रहा था कि आज उसे नयी चेतना प्राप्त हुई है। आज कोशा ने निश्चय कर लिया था कि जगत् में सभी नारी से पराजित हुए हैं। नारी ने कभी पराजय का मुंह नहीं देखा । नारी जगत् की चिरविजयिनी शक्ति है..... मैं भी अपने स्वामी पर विजय प्राप्त कर नारी का यह चिरगौरव सुरक्षित रखूंगी। कोशा अपने विलास भवन में आयी । चित्रा से उसने कहा- 'चित्रा ! कल से मैं अपने स्वामी के आसन के समक्ष विभिन्न नृत्य करूंगी। दिन का पहला प्रहर बीत जाने पर मैं प्रतिदिन अभिनव नृत्य प्रदर्शित करूंगी। तुझे सारी व्यवस्था करनी है। कामगृह में आज ही एक छोटा-सा नृत्य-मंच बनवा देना। वहां प्रतिदिन दो बार सुगंधित धूप की व्यवस्था करना और रति तथा अनंग के लिए प्रिय पुष्पों की बिछावत करना..... हां, आज ही राजवैद्य के यहां से काम संदीपक सुगंध फैलाने वाले अर्क मंगा लेना। कामगृह में प्रत्येक वस्तु कामसंदीपन में सहयोगी बने, ऐसी व्यवस्था करना । ' 'आपकी आज्ञा के अनुसार ही व्यवस्था होगी । ' चित्रा ने कहा । चित्रा कुछ दूर गई, इतने में ही पुन: उसे बुलाकर कोशा ने कहा - 'चित्रा ! एक महत्त्व की बात याद रखना कि कामगृह में कोई वृद्ध दासी या परिचारिका न जाए। यदि जाना आवश्यक हो तो नवयुवती और रूपवती ही वहां जाए और उत्तम वस्त्रालंकारों से सज्जित होकर ही जाए।' चित्रा ने हर्ष भरे स्वर में कहा - ' अत्युत्तम....!’ दूसरे दिन ...... २५६ Jain Education International आर्य स्थूलभद्र और कोशा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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