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कठोर तपस्या करने वाले शंकर भी पार्वती के कटाक्ष के समक्ष पामर हो गए थे। ब्रह्मा जैसे ज्ञानी भी सरस्वती के सौन्दर्य को पचा नहीं सके। विश्वामित्र की साधना मेनका के समक्ष फीकी पड़ गई थी। और इस रूपवती नृत्यांगना कोशा के समक्ष क्या मुनि स्थूलभद्र अटल रह जाएंगे? एकान्त में हमेशा नारी की जीत होती रही है।
और स्थूलभद्र के समक्ष कोई सामान्य नारी नहीं थी। वह नारी है भारत की रूपरानी....उसी की प्रियतमा....स्थूलभद्र के रोम-रोम में कोशा की अनगिनत स्मृतियां हैं.....
अब जीत किसकी होगी?
क्या स्थूलभद्र इस अविजित पर विजय पाने के लिए यहां आए हैं? क्या यह विराग और राग का संग्राम तो नहीं है?
कोशा जीतेगी तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। आश्चर्य तब होगा जब स्थूलभद्र जीतेगा।
क्योंकि नारी सदा जीतती रही है और पुरुष सदा हारता रहा है।
फिर भी दोनों-कोशा और स्थूलभद्र असामान्य हैं, इसलिए कौन जीतेगा, कौन हारेगा, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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