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________________ एक पात्र है। बगल में रजोहरण और हाथ में दंड है। इसके अतिरिक्त उसके पास कोई सम्पत्ति नहीं है। उसकी दृष्टि नीचे भूमि पर टिकी हुई है। वह और कोई नहीं..., मुनि स्थूलभद्र थे। चित्रा हर्ष से उछल पड़ी- 'देवी! देवी! ....स्वामी आ गए!' आर्यपुत्र को देखते ही कोशा के मन में एक प्रश्न उभर आया- मेरे स्वामी क्या ऐसे हो गए हैं ? क्या उनके प्राणों में ममता की कोई रेखा रही नहीं? मुनि स्थूलभद्र धीरे-धीरे भवन की ओर बढ़े। कोशा के कानों पर पुन: चित्रा के शब्द टकराए- 'देवी! स्वामी आ गए। चलो, जल्दी करो।' सब सामने गए। स्थूलभद्र पास में आए। कोशा ने वेदना और प्रेमभरी नजरों से स्वामी की ओर देखा और प्रणाम किया। आर्य स्थूलभद्र गम्भीर स्वर में बोले-धर्मलाभ ! कोशा ने पूछा- 'स्वामिन् ! कुशलक्षेम हैं ?' 'धर्म के प्रसाद से । मैं आपकी चित्रशाला में चातुर्मास बिताना चाहता हूं। यदि आप अनुमति दें तो...' 'मेरी अनुमति किसलिए! सब कुछ आप ही का है। आप चित्रशाला में प्रसन्नता से रहें।' मुनि कुछ उत्तर दें, उससे पूर्व ही चित्रा ने स्वर्णथाल कोशा की ओर किया। कोशा ने स्वर्ण के रत्नजड़ित पुष्पों से स्थूलभद्र को वर्धापित किया। मुनि स्थूलभद्र एक वृक्ष के नीचे बैठ गए। 'भद्रे ! मैं कुछ समय पश्चात् भवन में ही जाऊंगा।' चित्रा, माधवी, कोशा-सब मुनि की निर्विकार प्रतिमा को देखती रहीं। कोशा के अन्तर में उभरने वाले प्रश्न कण्ठं तक आकर रुक जाते थे। पन्द्रह दिन बीत गए । चातुर्मास प्रारम्भ हो चुका था। मेघ का गरिव प्रारम्भ हुआ। बिजलियां कड़कने लगीं। मेघमाला उमड़ आयी। वर्षा और तूफान २५१ आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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