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'भाई! तुम्हारा मंगल हो। धन्य हो तुम! मुझे अभी उनके पास ले चलो।' कोशा ने आसन से उठकर कहा।
'अभी रात्रि के समय वहां जाना उचित नहीं है। कल वे स्वयं तुम्हारे यहां आएंगे।'
'मेरे यहां.......?' 'हां, वे यहीं रहेंगे।' 'स्वामी का स्वास्थ्य कैसा है ?'
'मुनि-जीवन की कठोरता शरीर पर देखी जा सकती है। फिर भी वे पूर्ण स्वस्थ हैं। उनके नयन बहुत तेजस्वी हो गए हैं। तुम उनको देखकर आश्चर्य में डूब जाओगी।'
चित्रा ने कहा- 'देवी! मेरी बात आपने उस दिन नहीं मानी थी। मैं कह रही थी कि मुनि-जीवन का पालन करना सरल नहीं है। आज देखो, स्वयं घर आ गए। मेरी बात सही निकली।'
'क्या वे मुनि-जीवन से घबराकर आए हैं?' कोशा ने संदेह से
पूछा,
'इसके बिना यहां आने का तात्पर्य ही क्या है?' _ 'कारण कुछ भी हो। अब वे यहां से नहीं जा सकेंगे। मैं उनको अब हृदय में छिपा लूंगी। चित्रा! कल प्रात:काल से पहले-पहले सारे भवन को फूलों से सजा देना।'
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आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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