________________
दीं। अब तुम मुझे आशीर्वाद दो कि जिस मार्ग पर महान स्थूलभद्र ने चरण बढ़ाए हैं, उसी मार्ग का मैं भी अनुगमन करूं। एक ममतामयी मां जिस भाव से अपने पुत्र को आशीर्वाद देती है, वैसा आशीर्वाद तुम मुझे दो। मैं अपने पथ पर अडिग रहूं.....अपना आत्मकल्याण कर सकूं।' 'सुकेतु! क्या कह रहे हो ?'
‘देवी! बंधनों के जाल में फंसा सुकेतु बंधन को तोड़कर मुक्तिमार्ग का प्रवासी बन रहा है ।'
'सुकेतु! तुम धन्य हो... मेरा प्रणाम स्वीकार करो' - कहकर कोशा सुकेतु के चरणों में नतमस्तक हो गई।
सुकेतु ने सारे वस्त्र और अलंकार उतार वहां से प्रस्थान कर दिया। कोशा, चित्रलेखा, चित्रा आदि के हृदय नाच उठे ।
निर्बल सुकेतु एक नारी की प्रेरणा से कितना महान बन गया। पामर सुकेतु आज कितना महान दिख रहा था !
कल तक उसका मन बंधन में रचा-पचा था और आज वह मुक्ति में रच पच रहा है।
-
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
२४६
www.jainelibrary.org