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________________ केंचुली पहन रखी थी। गुलाबी रंग का कमरपट्टा धारण किया था। उसके केश पैर की एड़ी तक नागिन की तरह झूल रहे थे। सुकेतु कोशा के मुग्ध रूप को देखता रह गया। उसने सोचा-क्या स्वर्ग से उर्वशी तो नहीं आ गई है? इस रूप के समक्ष कौन पराजित नहीं होता ? वह बोला- 'कोशा! तुम्हारा रूप अति मनोहर और मन को बांधने वाला है।' कोशा ने हंसकर कहा- 'यह तो मात्र रूप का अभिनय है। आज मैं तुमको अपनी महत्ता नहीं बताऊंगी, अपने स्वामी की महत्ता बताऊंगी। मैं जो आज सूचिका नृत्य प्रस्तुत करूंगी, उससे बंधन का भाव व्यक्त होगा। वह भाव इतना प्रबल होगा कि कोई भी व्यक्ति अपने अस्तित्व को भूलकर विलास के बंधन में जीवन भर बंधे रहने के लिए तैयार हो जाएगा। इस नृत्य में मैं प्रतिपल मृत्यु के साथ नाचती रहूंगी।' स्थान-स्थान पर सरसों के ढेर पड़े थे। उन पर पड़ी थीं, तीखी अति तीक्ष्ण सूचिकाएं। कोशा ने अभिनय प्रारम्भ किया। उसका अभिनय इतना यथार्थ था कि कोई भी पुरुष उसके नयनाभिराम अंग-मरोड़ और नयन-प्रक्षेप से बंधे बिना नहीं रहा। उसका अभिनय मानो सब पुरुषों को यह कह रहा था-ओ पुरुष! यहां आ, यहां आ। स्त्री के साहचर्य के बिना क्या है सिद्धि ? कोशा के पैर अब तीखी सूचिकाओं पर पड़ने लगे। उद्दाम नृत्य प्रारम्भ हुआ। कोशा अपने आपको भूल-सी गई। उसके पैरों के नीचे मृत्यु का जाल बिछा था। मस्तक पर यौवन का नशा झूम रहा था। आंखों में रूप का जादू और हृदय में स्थूलभद्र का स्मरण था। नृत्य तीव्र हुआ। राजनर्तकी मस्त हो गई। रूपकोशा के रूप और यौवन को देखकर सुकेतु पागल बन गया। सूचिका नृत्य पूरा हुआ। अर्ध घटिका के बाद वाद्यकारों ने करुण रागिनी प्रारम्भ की। कोशा श्वेत वस्त्र धारण कर नृत्यभूमि में आयी थी। २४३ आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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