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________________ अध्यक्ष हूं। मेरी भुजाओं में अपार शक्ति है। मेरी समृद्धि अनन्त है। मेरा हृदय प्रेम से छलक रहा है तुम कह सकती हो कि स्थूलभद्र बेजोड़ वीणावादक थे। वीणावादन भी क्या कोई कला है? तुम यदि कला का प्रत्यक्ष दर्शन करना चाहती हो तो मैं अपनी कला बता सकता हूं। उसको देखकर तुम पागल बन जाओगी।' 'वाह! आप कलाकार भी हैं !' कोशा ने व्यंग्य से कहा। सुकेतु उठा और अपना धनुष लेने त्वरा से गया। सुकेतु हाथ में धनुष और बाणों का तूणीर लेकर आया। कोशा ने उसे हर्ष से उन्मत्त देखा। सुकेतु ने धनुष पर बाण चढ़ाया और एक आम को लक्ष्य कर छोड़ा। बाण आम के साथ कोशा के चरणों में आ गिरा। सुकेतु बोला- 'यह तो सामान्य कला है। दूसरा चमत्कार बताता हूं।' सुकेतु ने एक-एक कर बारह बाण छोड़े। वे सारे बाण एक-दूसरे के पीछे अनुस्यूत हो गए। उनके द्वारा आम की शाखा नीचे नम गई। सुकेतु ने उस नत शाखा से आम तोड़ कोशा को दिए। सुकेतु मन-ही-मन प्रसन्न हो रहा था कि कोशा इस कला से प्रेम में सराबोर होकर उसे स्वामी के रूप में स्वीकार कर लेगी और फिर त्रिभुवनसुन्दरी के बाहुपाश में जकड़ा हुआ वह..... कोशा बोली- 'रथपति! यह कोई कला है ? कला वह है जो बंधन से मुक्त कर दे। यह केवल करामात है । मैं तुम्हें इससे भी अनोखी करामात दिखाती हूं। तुम चलो चित्रशाला में।' देवी कोशा की आज्ञा से चित्रशाला की नृत्यभूमि की अपूर्व सजावट की गई। रात्रि का प्रथम प्रहर बीता। दीपमालिकाओं की जगमगाहट से नृत्यभूमि जगमगा उठी। चारों ओर सुगंधित धूप की लहरियां बिखर गईं। देवी रूपकोशा दिव्य वस्त्र धारण कर अपनी प्रिय बहन चित्रलेखा के साथ नृत्यभूमि में आयी। कोशा ने केसरिया रंग का उत्तरीय और नीले रंग की आर्य स्थूलभद्र और कोशा २४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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