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बीच में ही सुकेतु ने उसका हाथ पकड़कर कहा- 'प्रिये! मैं तो केवल सम्राट् की आज्ञा का पालन करने के लिए जा रहा हूं। इस भवन की रक्षा तुझे ही करनी है। मैं यदा-कदा यहां तेरे पास आता रहूंगा।'
कामंदकी दासी थी, पर वह जानती थी कि पुरुष वचन देने में होशियार होते हैं, वचनों का पालन करने में कृपण।
सुकेतु ने उसका एक चुम्बन लिया।
वह अपना सारा सामान रथ में रखकर रूपकोशा के भवन की ओर चल पड़ा।
क्या रूपकोशा सुकेतु को स्वामी के रूप में स्वीकार कर लेगी? क्या सुकेतु रूपकोशा के कोमल प्राणों को जीत लेगा? ___ बेचारा सुकेतु! उसे यह ज्ञात भी नहीं था कि आज का सूर्योदय उसके लिए कैसा होगा!
सूर्य मुदित हो या न हो, सुकेतु तो मानता ही था-कोशा तो अब मेरी हो गई है।
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आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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