________________
माता के विदा हो जाने पर कोशा ने चित्रा को बुलाकर कहा, 'चित्रा! नृत्यगृह में सारी तैयारी शीघ्र ही सम्पन्न करने की व्यवस्था कर । आचार्य कुमारदेव आए हैं। मैं वस्त्र-परिवर्तन कर आ रही हूँ। लवंगिका और हंसनेत्रा को मेरे वस्त्र-खण्ड में भेज । माधवी को कह कि वह आचार्यदेव के सत्कार के लिए सारी सामग्री एकत्रित करे। पीले पुष्पों की एक माला तैयार करने के लिए माली को कह।'
कोशा चंचल चरणों से वस्त्र-खण्ड में गई। वस्त्र-खण्ड अत्यन्त भव्य और मनोहर था। उसकी दीवारें विशाल दर्पणों से मंडित थीं। उसकी छत भी दर्पणों से आच्छादित थी। वस्त्र-खण्ड में खिड़की नहीं थी। मात्र एक प्रवेशद्वार था। पूर्व दिशा में चन्दनकाष्ठ से निर्मित विशाल पेटिकाएं थीं। दक्षिण दिशा में चांदी की पेटिकाएं थीं। पश्चिम दिशा में आसन बिछे थे। उन आसनों पर अनेक प्रकार की प्रसाधक सामग्री थी। खण्ड के मध्य में शंखाकृति का एक आसन बिछा हुआ था। उसके पीठिका नहीं थी। उस आसन पर हंसपंखों से गूंथी हुई श्वेत चादर बिछी हुई थी। वस्त्रखण्ड में प्रवेश कर कोशा ने अपने सारे वस्त्र और आभूषण उतारे। लवंगिका और हंसनेत्रा ने नये वस्त्र और आभूषणों से कोशा की देह का शृंगार किया।
हीरक-मंडित श्यामवर्ण वाला कौशेय उपवस्त्र, श्वेतरंग की केंचुली, श्वेत रंग का अम्बर, श्वेत स्वर्ण का मुकुट, हीरकदामिनी, हीरककुण्डल, हीरकवलय, मुक्त-माला, मुक्ता और पन्ने के बाजुबन्द, विद्रुम की कटिमेखला, रौप्य नूपुर, माणिक्य से मढी नागदमनी आदि वस्त्रालंकारों को धारण करने पर कोशा देवकन्या जैसी लग रही थी। दर्पण में अपने प्रतिबिम्ब को देखकर कोशा ने कहा, 'लवंगिका ! अब काजल की रेखा
और कमलचन्द्रक!' लवंगिका ने कोशा के नयनों में काजल की रेखा और हंसनेत्रा ने कपाल पर कमलचन्द्रक रचा।
मालिनी पीले फूलों की माला ले आयी। कोशा ने पीले फूलों की माला पहनी।
आचार्य कुमारदेव पूर्व भारत के रत्न थे। साठ वर्ष की अवस्था में भी उनकी मानसिक शक्तियां बहुत ही सक्रिय थीं। भारतीय संगीत और
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
१३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org