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प्रसाधन पूरा हुआ। प्रसाधन-कक्ष से कोशा अपनी मां सुनन्दा के पास आयी और माता के चरणों में मस्तक नत कर एक आसन पर बैठ गई। मां ने पूछा, 'पुत्री! आज छ विलम्ब से आयी?'
'हां, मां! प्रभाती पवन बहुत ही मधुर था।' कहते-कहते कोशा को प्रात:काल का स्वप्न याद आ गया।
"प्रभाती पवन सदा ही मधुर होता है, बेटी! कोई अस्वस्थता तो नहीं है?'
'नहीं, मां मैं बहुत ही आनन्दित हूं।'
उस समय एक परिचारिका केसर, कस्तूरी, शिलाजीत, स्वर्ण और मुक्तामिश्रित गाय के दूध के दो पात्र ले आयी। माता और पुत्री ने धीरे-धीरे दुग्धपान किया।
एक दासी तांबूल की कटोरी ले आयी। माता और पुत्री ने तांबूल खाया।
सुनन्दा ने कहा, 'चित्रलेखा अभी तक क्यों नहीं आयी?' एक दासी ने कहा, 'वह तो आम्रवाटिका में गई है।'
चित्रलेखा सुनन्दा की द्वितीय कन्या, रूपकोशा की छोटी बहन ! कोशा ने कहा, 'माँ, लेखा तो बहुत चंचल है।'
हंसती हुई सुनन्दा बोली, 'चार वर्ष की अवस्था में तू भी ऐसी ही थी।'
एक परिचारिका ने प्रणाम करते हुए कहा, 'देवी! आचार्य आए हैं।' सुनन्दा का वदन प्रफुल्लित हो गया। वह बोली, 'कहाँ हैं ? उनके सत्कार की आयोजना करो।'
___ 'आम्रवाटिका में वे चित्रलेखा के साथ खेल रहे हैं।' परिचारिका ने कहा।
'कोशा, तू नृत्यगृह में तैयारी कर ! मैं आचार्य को लेकर शीघ्र ही आ रही हूं | सोल्लक और दक्षक भी आ गए हैं। सोमदत्त अभी-अभी पहुंच जाएगा।' कहकर देवी सुनन्दा परिचारक के साथ आम्रवाटिका की ओर गई। आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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