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चित्रा ने तीसरी बार आवाज दी, 'देवी! उषा का मंद प्रकाश उभर रहा है।' देवी के कमलसंपुट नयन धीरे-धीरे खुले। चित्रा ने कहा, 'देवी, कोई अस्वस्थता तो नहीं है?'
'ओह, चित्रा!' कहकर देवी शय्या से उठी और वातायन की ओर देखती हुई बोली, 'मैं स्वस्थ हूं।'
एक स्वर्णपात्र में रत्नजटिल पादुका लेकर कल्याणी आ पहुंची। कोशा ने पादुकाओं को पहना।
चित्रा उसके केशकलाप को व्यवस्थित करने लगी। केशों की लटों में पिरोए हुए मोती अव्यवस्थित हो गए थे। स्वर्णकलश में जल लेकर लवंगिका आयी। कोशा ने उषापान किया।
कमलपात्र में लाल रंग के फूलों की माला लेकर माधवी आ पहुंची। चित्रा ने कोशा के गले में माला पहनाई। कोशा मंदगति से चलकर शयनगृह से बाहर आयी। शौच, दंतप्रधावन आदि प्रात:कर्म से निवृत्त होकर कोशा स्नानागार में गई।
चार-पांच परिचारिकाएं स्नानागार में देवी की प्रतीक्षा कर रही थीं। कोशा के कोमल शरीर पर सहस्रपाक तेल का मर्दन प्रारम्भ हुआ। फिर सर्वोषधि-संपुटित उबटन किया गया और फूलों के सत्वार्क से सुरभित जल से देवी को नहलाया। स्नानागार के पास ही प्रसाधन-कक्ष था। देवी ने वहां जाकर उत्तम वस्त्र पहने।
परिचारिकाओं ने केशकलाप गूंथा। केशों में मोती पिरोए। उसने रत्न-जटित दामिनी और कुण्डल धारण किए। उस समय उसका रूप उषा के मंगल-दर्शन के समान शोभित हो रहा था। ऐसा लग रहा था मानो उषा स्वयं ही मानवलोक पर उतर आयी हो।
कोशा ने परिजातक पुष्पों की माला पहनी। मणिरत्नों से झिलमिल करने वाली कटिमेखला कोशा के प्रथम यौवन के प्रथम प्रहर का अभिनन्दन करने लगी।
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आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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