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________________ 'मगधेश्वर की जय हो। मैं आपकी कृपा से इस कार्य में अवश्य ही सफल रहूंगा। सुकेतु ने उठकर मगधेश्वर की चरण रज अपने मस्तक पर चढ़ाई। मगधेश्वर घननन्द रथपति की ओर देखते रहे। रात्रि का प्रथम प्रहर चल रहा था। चित्रशाला में कोशा अपनी छोटी बहन चित्रलेखा को 'नागदमन' नृत्य का प्रशिक्षण दे रही थी। चित्रलेखा इस नृत्य को सीखने के लिए पूरा श्रम कर रही थी। इस नृत्य में प्रत्येक अंग को नवनीत जैसा कोमल बनाना होता है। चित्रलेखा प्रयत्न कर रही थी। कोशा कह रही थी-'लेखा! और ज्यादा मोड़ अपने अंगों को। सुकुमार बेल की तरह अंगों को कोमल बना डाल। नर्तकी के शरीर की हड्डियां चरमरा जाएंगी, छोड़ दे इस भय को और लचीला बना दे शरीर को।' चित्रलेखा नृत्य को हस्तगत करने का पूरा प्रयत्न कर रही थी। उसी समय चित्रा नृत्यशाला में प्रवेश कर कोशा के पास जाकर बोली- 'देवी सम्राट् का संदेशवाहक आया है।' 'अब?' 'जी हां, वह मध्यखण्ड में आपकी प्रतीक्षा कर रहा है। उसके हाथ में सम्राट् का संदेश-पत्र है, ऐसा अनुमान है।' चित्रा ने कहा। कोशा नीचे गई। उसको देखते ही संदेशवाहक उठा और नमस्कार कर बोला- 'देवी! सम्राट् ने आपका मंगल चाहा और यह संदेश भेजा है।' कोशा ने ताड़पत्र पर लिखे संदेश को ले लिया। संदेशवाहक नमस्कार कर चला गया। कोशा ने दीपमालिका के प्रकाश में उसे पढ़ा। उसमें लिखा था 'श्री मगधेश्वरो विजयते। देवी रूपकोशा दीर्घायु हों। अपने जो याचना की थी, उसे पूरी करते हुए मगधेश्वर को प्रसन्नता हो रही है। कल प्रात:काल मगधेश्वर का रथपति सुकेतु आपके यहां आपके प्रियतम के रूप में आएगा । मगधपति आप दोनों का कल्याण चाहते हैं। आपका जीवन सरस और आनन्दमय हो, यही मंगल कामना है।' आर्य स्थूलभद्र और कोशा २२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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