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________________ किये गए जल-विहार-इनमें से किसी की भी स्मृति क्या उनके प्राणों के साथ जुड़ी हुई नहीं रहेगी? कोशा का हृदय आशा के स्वप्न में स्थिर हो गया। जब वह थककर शय्या में पड़ जाती तब.... ओह, उसकी नींद भी अदृश्य हो गई थी....प्रियतम के अनन्त स्मरण उसके हृदय को झकझोर देते। ये स्मरण उसके मन में अपार पीड़ा उत्पन्न कर देते। इस प्रकार महीनों से कोशा प्रियतम के प्रत्यागमन की राह देख रही थी। आशा ही आशा में फागुन की रातें बीत गईं। इधर सुकेतु ने सम्राट् को स्मृति दिलाई, किन्तु उन्हें कोशा के लिए योग्य पात्र (सहचर) दिखाई नहीं दे रहा था। एक दिन सुकेतु ने सम्राट् को प्रसन्न देखकर कहा- 'कृपावतार! आप यदि आज्ञा दें तो मैं रूपकोशा के चित्त को प्रसन्न कर सकता हूं।' सम्राट् बोले- 'सुकेतु! तेरे लिए मैंने सोचा भी था, किन्तु रूपकोशा तुझे चाहेगी या नहीं, यह एक प्रश्न है।' 'महाराज! संसार में ऐसी एक भी नारी नहीं है जो वीरत्व का अभिनन्दन न करती हो।' सुकेतु बोला। सम्राट् धननन्द मुसकराकर बोले- 'सुकेतु ! यह अभिनन्दन करने का प्रश्न नहीं है, प्रश्न है चाहने का । नारी कभी अनचाही वस्तु के प्रति नत नहीं होती, उसका अभिनन्दन नहीं करती। क्या तू कोशा के स्वामी के रूप में वहां जा सकेगा?' 'आपकी आज्ञा हो तो यह अशक्य नहीं लगता।' सुकेतु की चिरपोषित अभिलाषा जीवित हो उठी। 'अच्छा मैं कोशा को कल ही कहलवा दूंगा। तू कल ही उसका स्वामी बन जाना। एक बात याद रखना, यदि तू कोशा को प्रसन्न करने में असफल रहा और राजनर्तकी की मर्यादा का संरक्षण नहीं कर सका तो तुझे कठोर दण्ड भुगतना पड़ेगा।' सम्राट् ने कहा। २२७ आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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