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'महाराज! मैं स्वामी के बिना एकाकी जीवन कैसे बिता सकती हूं ? आप कृपा कर मुझे स्वामी की भिक्षा दें।'
सम्राट् विचारमग्न हो गए। राजवैभव के मध्य रहने वाली कोशा पुरुष के साहचर्य के बिना रह नहीं सकती, इसीलिए किसी योग्य स्वामी की भीख मांग रही है। सम्राट् ने कहा- 'कोशा! तू निश्चिंत रह । तेरी इच्छा पूरी होगी।'
'सम्राट् की जय हो!' कहकर कोशा ने हर्ष व्यक्त किया। सम्राट् ने सुकेतु की ओर देखकर कहा- 'सुकेतु! देवी कोशा की याचना को याद रखकर मुझे बताते रहना।'
'जैसी मगधेश्वर की आज्ञा'-कहकर सुकेतुने पुन: कोशा को देखा। कोशा प्रणाम कर चली गई।
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आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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