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________________ माधवी बोली-'देवी! लगता है कि आर्यपुत्र अपने आपको भूल-से गए हैं। वे अपने मन में खो गए हैं।' कोशा वहां से आम्रवाटिका की ओर दौड़ी। एक विशाल आम्रवृक्ष के नीचे आर्य स्थूलभद्र एक घटिका से बैठा था। उसकी दृष्टि आत्मा की गहराई में उतर चुकी थी। उसका श्वेत उत्तरीय धरती पर पड़ा था। मध्याह्न बीत चुका था। उसकी आत्मा शाश्वत सुख की टोह में लग चुकी थी। आस-पास के विश्व से वह बेभान था। उसका कंठाभरण तेज किरणों से जगमगा रहा था। उसके हृदय में मुक्ति के स्वर उठ रहे थे। चारों ओर देखती हुई, व्यथित हृदय और मन की कल्पनाओं में उलझती हुई कोशा वहां आयी। स्वामी को देखते ही वह उनके चरणों में गिर पड़ी और करुणा स्वर में बोली- 'नाथ! स्वामिन्....! प्रियतम!' स्थूलभद्र ने प्रियतमा की ओर देखा। रूपकोशा ने गद्गद स्वरों में कहा- 'प्रभु! मेरा क्या अपराध है ? मेरा क्या दोष है ? मेरी आशाओं को आप..... 'देवी! शांत रहो। मेरे जीवन का आज मंगलमय दिन है। उत्सव करो....जीवन को धन्य बनाओ.... मुझे मेरी वस्तु प्राप्त हो गई है।' स्थूलभद्र ने भावभरी वाणी में कहा। ये शब्द सुनकर कोशा का विषाद लुप्त हो गया। वह हर्षप्रफुल्ल होकर बोली- 'मगध के महामन्त्री बन गए, प्राण-देवते? ओह, तो फिर आप यहां एकान्त में क्यों बैठे हैं? आपके चेहरे पर आनन्द क्यों नहीं दिखाई दे रहा है?' स्थूलभद्र मुसकराया। माधवी और चित्रा इसी ओर आ रही थीं। उन्हें देखकर कोशा ने चिल्लाकर कहा-'अरे माधवी! चित्रा! आर्यपुत्र की महार्धवीणा यहां ले आओ और सोमदत्त से कहो कि उत्सव आम्रवाटिका में ही होगा।' तीव्रगति से आती हुई चित्रा और माधवी वहीं से मुड़ गईं। स्थूलभद्र बोला- 'देवी! तुमने मेरे कथन का अभिप्राय नहीं समझा। महामन्त्री होना २१७ आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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