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३६. वीणा के तार टूटे
कोशा का हृदय आज आनन्द से उछल रहा था। प्रियतम आज मगध के महामन्त्री बनकर आएंगे, सम्राट की दायीं भुजा बनकर आएंगे, समग्र भारत के महापुरुष बनकर आएंगे। आज जैसा आनन्द जीवन के किसी भी क्षण में मिलने वाला नहीं है। आज नारी का विजयोत्सव है....आज कोशा राजनर्तकी से महात्मा कल्पक के वंश की कुलवधू होगी...एक पत्नी के गौरव से मगध की प्रेरणा बनेगी...स्वामी की मंगलमयी सखा होगी।
कोशा के अपार हर्ष से समूचे भवन में आनन्द की ऊर्मियां उछलने
लगीं।
बहन के आनन्द को देखकर चित्रलेखा भी प्रफुल्लित हो गई। उसने कोशा के समक्ष आकर कहा- 'आज मुझे अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर दो।'
'ओह, लेखा! तेरी एक नहीं अनेक इच्छाएं पूरी करूंगी। बोल, तू क्या चाहती है?'
'बहन! महामन्त्रीश्वर के स्वागत का पुण्य मुझे लेने दो।' 'बस....इतनी-सी बात है!'
'हां, आज आप दोनों प्रेक्षक बने रहना। मैं पहली बार आपके सामने नृत्य करूंगी!' चित्रलेखा ने कहा।
'कौन-सा नृत्य करोगी?' 'मंगल प्रमोद....' 'ठीक है, तू जा....तैयारी कर।'
'यौवन-मंदिर के प्रथम सोपान पर चढ़ती हुई चित्रलेखा आनन्दविभोर होकर एक हिरनी की भांति दौड़ती हुई चित्रा के पास गई।
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आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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